Akella Raghavendra

Introduction

आकेल्ळ राघवेंद्र का जन्म 1 जून 1974 में हुआ । आई. ए. एस के छात्रों के शिक्षक, प्रेरक वक्ता, व्यक्तित्तव विकास के निपुण, लेखक, तेलुगु भाषा के प्रेमी, मानव शास्त्र, समाज शास्त्र,(समाज विज्ञान) दर्शन शासत्र जैसे विविध शास्त्रों पर विशेष ज्ञान संपन्न विध्याधनी है।
व्यक्तिगत जीवन

आकेल्ळ का जन्म ऑध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के राजमहेंद्रवरम् में हुआ ।पढे – बढे कोनसीमा के अमलापुरम् प्रदेश में । दसवीं तक मुरमुल्ळ की सरकारी पाठशाला में अध्ययन कर, इसके उपरांत वह अमलापुरम् में एस. के. बि आर् कलाशाला में बि.एस्सी तक पढें। पिता का नाम सुब्रम्हण्य शर्म, माता सूर्यकुमारी ललिता। इनकी तीनों संतानों में आखिर है आकेल्ळ। पत्नी का नाम माधवी, पुत्री सिरिवेन्नला, पुत्र संकल्प ऋत्विक।

तत्व

अपनी शौली में जीवन तत्व का रूपायत कर लेनेवाला व्यक्ति है आकेल्ळ। “दिल से पावन और पवित्र, मन से निर्भल और स्पष्टता विजय का मूलमंत्र है” यह आकेल्ळ का कथन है। उसने पुस्तकों से जितना ज्ञान प्राप्त किया, जीवन व्दारा जो अनुभव पाया उन दोनों को मिलाकर, भावी पीढि अपने जीवन को सुंदर रुप से कैसे निर्मित करें, अति आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से कहना ही उसका लक्ष्य है। उसी पथ का पथिक बन अग्रसर हो रहा आकेल्ळा।

लेखक

आकेल्ळा लब्ध प्रतिष्ठि लेखक हैं। आई. ए. एस छात्रों केलिए मानव शास्त्र, तेलुगु साहित्य आदि विषयों पर ग्रंथों की रचना की है। गिरजाडा कृत “कन्याशुल्कम्” नाटक के गिरीशम्, वेंकटेशम्- फिर जन्म लेते नामक नटखट विचारों से “आज का गिरीशम्” नामक हास्य व्यंग्य उपन्यास की रचना की आक्ल्ळा ने। विजय को कैसे प्राप्त करना होगा, इसका विशलेषण करते उसने “सफलता का राज” (सीक्रेट्स आफ सक्सेस) पुस्तक की रचना की। माडपाटी हनुमंत राव के जीवन पर भी उसने एक पुस्तक को रचा। कुछ सिनेमा केलिए संवाद एवं कथाओं को प्रस्तुत किया। आकेल्ळ की कलम से झरीओं कुछ प्रमुख रचनाओं पर ध्यान देने से ...

व्यक्तित्व

सामान्य मध्यवर्गीय परिवार के व्यक्ति है आकेल्ळा। अपना जो मुख्य लक्ष्य था, पलभर में हाथ से छूट जाने पर भी वे किंचित भी निराश नहीं हुए। अपनी शक्ति के बल से आक्ल्ळ अपनी जीवन को सुंदर बनाने के प्रयत्न में हैं। आई. ए. एस अधिकारी के रुप में वह अपने को प्रस्तुत करना चाहता था। इसी आशय से चारबार उसने सिविल्स लिखा। पर परिणाम प्रतिकूल ही रहा। किंचित् निराश भी हुआ। इस स्थिति से निकल सशक्त से अपने कदम आगे बढाया। चार बार लिखने के पश्चात् उसे विदित हुआ आई. ए. एस कैसे हासिल करें। अपने जैसे कई इस प्रकार असहाय अवस्था का शिकार न बने, पराजय का मुँह न देखे इसी सदुद्दश्य से – अपनी हार का कारण जान, अपनी कमियों को कैसे दूर करें – इसी बात को स्पष्ट करने की सफल चेष्टा की आकेल्ळ ने। यही उसका विजय का रहस्य था।
इसी कारण आकेल्ळ के पास प्रशिक्षण पानेवाले कई लोगों ने उच्च पदों की शोभा बढाई। उसके पास शिक्षित होकर आई. ए. एस पानेवालों आकुराति पल्लवी, अद्दंकि श्रीधर् बाबु, विजयारावु, आई. ए. एस के चुने गये छात्रों में आवुल रमेष रेड्डि, विजयभास्कर्, राजकुमारी, वेंकट, मुरळि, आई. आर. एस केलिए चुने गये लोगों में साधु नरसिंहारेड्डि, समता, वीरभद्रम्, तिरुमल नायक, बलराम नायक आदि है। उसी प्रकार ग्रूप- 1 स्तर के अधिकारी हैं हरिता, संपत् कुमार, एम. वरप्रसाद रेड्डी, गंगाधर नाव, सुब्बारेड्डी, रमेश, उषारानी, कोटिरेड्डी, देवुलपल्लि सुब्बाराव, कृषणवेणी, मीराप्रसाद, श्रीदेवी, आदि व्यक्ति हैं।

आप साधारण नहीं

“होनहार बिरवान के होत चीकने पात” (coming events cast their shadows before) बढते- बढते हर मोड को पार करते समय, जीवन में एक- एक पग आगे बढाते समय, अपनी सूझबूझ को देख लोग यही कहेंगे – “आप साधारण नहीं”। हममें कितनी सामयर्थ है, उसे कैसे प्रकट करें – हम जान सकते हैं। साधारण लगते कई लोग असाधारण कैसे बने। हमारी आँखों के आगे गोचर है।

शोभनबाबु की जीवनी

विजयी बनने केलिए क्या करें – यह सभी जानते हैं। वास्तव में इसे सभी जानते है। लेकिन वहाँ रोकने पर विजय का आस्वाद करेंगे कितने लोग इस बात को जानते हैं। न, नाम आदि मिलने पर अब बस कहना ही आर्ट आफ लिविंग हैं। जीवन में शांति का पता है वही। इस जीवन सार के अवगत करनेवाला शौकीला है शोभनबाबू। यह उनके जीवन यान, अंतरंग को आविष्कृत करता ग्रंथं हैं।.
अमिटछाप

स्वामी विवेकानंद, जान् किट्स, मार्टिन लूथर् किंग, बसवराज अप्पाराव, दामेर्ल रामारावु, जैसे इतिहासकार 40 वर्ष के भीतर स्वर्ग सिधारे महानुभावों का संक्षिप्त जीवन परिचयों का संकलन हैं “अमिटछाप”। पेट केलिए भोजन केलिए ही बम पैदा होतो तो जानवर बन जन्मेंगे। फिर मानव जन्म क्यों बेकार में। जैसा हम जन्म लेते हैं हम वैसे ही रहना सकेंगें। असंभव को संभव बनाना मानव का लक्ष्ण है। यों ही तिहास की गति बदलनेवालों की कहानियां हैं ये।

आकेल्ळ के विचारों में जीवन

जीवन बहुत छोटा हैं। मूल्यवान भी। उसे प्रयोजनकारी रूपदेनेवाले हम ही। उठाकर फेंके फूलों की टोकरी में और सुंदर उपवन में कितना अंतर है। छात्र के रुप व्यवसाय पर, नौकरी मिलने पर परिवार के प्रति, बाद में समाज पर द्ष्टि रखना है। कैसा जन्मलिया नहीं क्यों जन्मी- यही मुख्य बात है। क्यों मरे कदापि नहीं। कौसे चले गए यही मुख्य बात है। आनंद, स्वास्थ्य,यश,संपत्ति ये चार जीवन सैध के मूल खंभे हो। समस्यायें, व्याकुलता,क्रोध, वेदना सहज स्वाभाविक है। भय से निर्भय की ओर विषाद से संतोष की ओर, विफलता से सफलता की ओर जीवन प्रस्थान ही हर मानव का कर्तव्य है। यह परिणाम क्रम ही जीवन है।

लक्ष्य के संबंध में आकेल्ळ के विचार

विध्यार्थियों को पहले ही अपने लक्ष्य का निश्चय कर लेना होगा। भय को छोडकर आत्मविश्वास के साथ जीना होगा। हमारा हस्ताक्ष्र आटोग्राफ बने। हमारे मरने के पश्चात् भी हमारे विचार और आदर्श भावपीढि को दीपस्तंभ बनकर प्रकाशित होना है। पशुओं पक्षियों को जन्म लेना ही मालूम है। जीवन के लक्ष्य से वे अनजान होते है। मनुष्य ही इसे जानते है। तात्पर्य यह है कि मनुष्य का जीवन लक्ष्य हीन न हो। हर एक में प्रतिभा होती है। उसे बाहर लाना होगा। गरम तवे पर पानी बूँद गिर भाव बन जाती है। वह पानी बूँद कमल के पत्ते पर गिर पडी तो चमक उठती है। वही बिंदू सीप में गिरे तो मोती बन जायेगा। हमारे अंतराल के वातावरण के अनुसार ही हमारे जीवन आधारित होंगे। समाज, परिवार, पाठशाला – ये तीनों विध्यार्थियों के भविष्य को निर्धारित करेंगे। हर व्यक्ति के जीवन का सच्चा हीरो पिता, असली स्फुरति प्रदात माता उन लोगों को कष्ट न दे – इस विचार को हर युवक और युवती के मन में होना है।

वेश भूषा( ड्रेस कोड) क्या कहता है

आकेल्ळ का आहार्य सदा एक सा होता है। 24 जून 2003 से उनकी वेश- भूषा सदा एक – सी है। कुर्ता, जीनपैंट, दाढी, ऐनक – इतना ही है। जीवन के प्रति अपने रूख का निर्धारण कर लिया है। जीन्स पाश्चात्य तत्व का, कुर्ता भारतीय तत्व के प्रतीक है। दाढी किसी न किसी संकल्प दीक्षा में रहने की सूचिका है।