आकेल्ळ का जन्म ऑध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के राजमहेंद्रवरम् में हुआ ।पढे – बढे कोनसीमा के अमलापुरम् प्रदेश में । दसवीं तक मुरमुल्ळ की सरकारी पाठशाला में अध्ययन कर, इसके उपरांत वह अमलापुरम् में एस. के. बि आर् कलाशाला में बि.एस्सी तक पढें। पिता का नाम सुब्रम्हण्य शर्म, माता सूर्यकुमारी ललिता। इनकी तीनों संतानों में आखिर है आकेल्ळ। पत्नी का नाम माधवी, पुत्री सिरिवेन्नला, पुत्र संकल्प ऋत्विक।
अपनी शौली में जीवन तत्व का रूपायत कर लेनेवाला व्यक्ति है आकेल्ळ। “दिल से पावन और पवित्र, मन से निर्भल और स्पष्टता विजय का मूलमंत्र है” यह आकेल्ळ का कथन है। उसने पुस्तकों से जितना ज्ञान प्राप्त किया, जीवन व्दारा जो अनुभव पाया उन दोनों को मिलाकर, भावी पीढि अपने जीवन को सुंदर रुप से कैसे निर्मित करें, अति आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से कहना ही उसका लक्ष्य है। उसी पथ का पथिक बन अग्रसर हो रहा आकेल्ळा।
स्वामी विवेकानंद, जान् किट्स, मार्टिन लूथर् किंग, बसवराज अप्पाराव, दामेर्ल रामारावु, जैसे इतिहासकार 40 वर्ष के भीतर स्वर्ग सिधारे महानुभावों का संक्षिप्त जीवन परिचयों का संकलन हैं “अमिटछाप”। पेट केलिए भोजन केलिए ही बम पैदा होतो तो जानवर बन जन्मेंगे। फिर मानव जन्म क्यों बेकार में। जैसा हम जन्म लेते हैं हम वैसे ही रहना सकेंगें। असंभव को संभव बनाना मानव का लक्ष्ण है। यों ही तिहास की गति बदलनेवालों की कहानियां हैं ये।
जीवन बहुत छोटा हैं। मूल्यवान भी। उसे प्रयोजनकारी रूपदेनेवाले हम ही। उठाकर फेंके फूलों की टोकरी में और सुंदर उपवन में कितना अंतर है। छात्र के रुप व्यवसाय पर, नौकरी मिलने पर परिवार के प्रति, बाद में समाज पर द्ष्टि रखना है। कैसा जन्मलिया नहीं क्यों जन्मी- यही मुख्य बात है। क्यों मरे कदापि नहीं। कौसे चले गए यही मुख्य बात है। आनंद, स्वास्थ्य,यश,संपत्ति ये चार जीवन सैध के मूल खंभे हो। समस्यायें, व्याकुलता,क्रोध, वेदना सहज स्वाभाविक है। भय से निर्भय की ओर विषाद से संतोष की ओर, विफलता से सफलता की ओर जीवन प्रस्थान ही हर मानव का कर्तव्य है। यह परिणाम क्रम ही जीवन है।